चाची की चुदाई

वो कहते हैं न …”हिम्मते मर्दा, मददे खुदा”. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. रोज माया चाची के नाम की मुठ मार-मार कर मेरा लंड भी थक गया था. उनकी आखों का निमंत्रण मैं समझता तो था, लेकिन डरता था. फिर एक दिन मैंने अपने हाथ में नहीं उनकी चूत में अपना पानी निकालने की ठान ली….ये उसी एक दिन की दास्तान है………

मेरा नाम अंकुश है. मैं कॉलेज में पढता हूँ! काफी हंसमुख, हैण्डसम और सुन्दर बंदा हूँ. कॉलेज में मेरे ऊपर काफी लड़कियां फ़िदा हैं, लेकिन मैं किसी को भाव नहीं देता हूँ.

अब मैं अपनी कहानी पे आता हूँ. मेरे घर के पास वाले घर में एक औरत रहती हैं, जो बहुत सुन्दर हैं. जब वो चलती है तो उसका हिलता हुआ पिछवाड़ा देखकर लंड खुद ब खुद सलामी देने लगता है. मैं उनको चाची बुलाता हूँ. वैसे उनका नाम माया है. मैंने माया चाची के नाम की कई बार मुठ मारी थी. और उनको चोदने के सपने देखा करता था.

माया चाची के पति यानी चाचा जी का काम ही ऐसा था की उन्हें कई – कई दिनों तक शहर से बाहर रहना पड़ता था. इसलिए चाची की चूत कई बार महीनों तक बिना लंड के प्यासी ही रह जाती थी ( ये बात उन्होंने ही मुझे बाद में बताई थी).

मैं चाची के घर बहुत कम ही जाता था. लेकिन वो हर एक दो दिन पे हमारे यहाँ आती रहती थीं. मुझसे भी वो काफी हंसी मजाक करती थीं. बात-बात में अपने घर न आने का ताना भी मार देती थीं. इसलिए मैं एक दिन जब बिलकुल खाली था तो उनके घर चला गया. चाची आज भी अधिकांश दिनों की तरह घर पे अकेली ही थीं. दरवाजा खुला हुआ था तो मैं अन्दर चला गया. वो बेड पे झुक कर अपने कपड़ों को तह लगा रही थीं. उनका पिछवाड़ा मेरी ओर था और काफी उभरा हुआ था. उनकी साड़ी उनकी गांड की दरार में फंसी हुयी थी. और गांड की गोलाइयां साफ़ पता चाल रही थी. ये देखते ही मेरे पैन्ट के अन्दर हलचल होने लगी.

जब माया की नजर मेरे ऊपर पड़ी तो उन्होंने खुश होते हुए बोला- अरे वाह! इतने दिनों बाद?

मैंने कहा- हाँ! बस किसी की याद आ गयी तो चला आया.

ये सुनकर वो हँसने लगी और मुझे बैठने को बोलकर खुद मेरे लिए पानी लेने चली गयीं. उनके जाते ही मेरी नजर बिस्तर पे पड़ी उनकी व्हाइट रंग की ब्रा और ब्लैक पैंटी पे पड़ी. मैं नजदीक से उनको देखते हुए माया की फिगर का अंदाजा लगाने लगा. उन अन्तःवस्त्र के हिसाब से तो माया का फिगर 34-30-32 होना चाहिए. मैंने सोच लिए की कुछ भी हो जाय आज तो इसको चोद के ही रहूँगा.

इतने में माया पानी लेके आ गयीं. शायद उन्होंने मुझे उनके अन्तःवस्त्र को घूरते हुए भाँप लिया था इसलिये बोली- क्या देख रहे थे?

ये पूछते वक़्त उनके होठों पे शरारत साफ़ झलक रही थी.

मैंने कहा- कुछ नहीं!, और कहकर वहीँ बैठ गया. जल्दबाजी में बैठने के कारण मेरा ध्यान जगह पे नहीं गया और मैं उनकी ब्रा पैंटी के ऊपर ही बैठ गया. मेरा लंड मेरे पैन्ट के अन्दर पूरा तम्बू बना रहा था. डर भी लग रहा था की चाची क्या सोचेगी?

जब चाची का ध्यान इस्पे गया कि मैं उनकी ब्रा पैंटी पे ही बैठ गया हूँ तो उन्होंने मुझे थोड़ा उठने को कहा. मेरे उठते ही उन्होंने झट से अपनी ब्रा पैंटी को खींच लिया और कहा- देख कर बैठना चाहिए था न.

मैंने कहा- वही तो देख रहा था….(बोलते-बोलते मैंने मुँह पे हाथ रख लिया.)

फिर कहा- सॉरी!

माया ने मुस्कुराते हुए कहा- कोई बात नहीं!

फिर वो मुझसे बिलकुल सट कर बैठ गयीं….और मुझसे इधर उधर की बातें करने लगीं. उनकी जांघों की रगड़ मेरी जांघों से हो रही थी. मैं लगातार उनके होठों और चूचियों को ही देख रहा था. मुझपे वासना का भूत इस कदर सवार हो गया कि अब मन में सिर्फ उन्हें चोदने का ही ख्याल आ रहा था. फिर मैंने उनका हाथ पकड़ लिया और इसके बाद उन्हें अपनी बाँहों में भर लिया.

मन ही मन खुश तो वो भी बहुत हुयीं लेकिन छूटने का नाटक करते हुए बोली- ये क्या कर रहे हो? छोड़ो न मुझे!!

थोड़ा गुस्सा भी हुयीं. मैंने उन्हें छोड़ दिया. लेकिन उनसे पहले की तरह ही सटा रहा. वो भी सटी रहीं और साथ में आँखें बंद करके “छोड़ो न मुझे!” की रट लगाये हुए थीं. मैंने उनके होठों पे अपने होठ रख दिए और उन्हें चूसने लगा. अपने दोनों हाथों से ब्लाउज के ऊपर से ही मैं उनके बूब्स भी दबाने लगा. उनके मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं.

पहले तो उन्होंने थोड़ा विरोध किया फिर मेरा साथ देने लगीं. अब मैंने धीरे-धीरे उनके ब्लाउज के हुक खोलने शुरू किये. इस काम में वो मेरा सहयोग कर रहीं थीं और मेरे लंड को मेरे पैन्ट के ऊपर से ही सहला रही थीं. मैंने हुक खोलने के बाद एक झटके में उनका ब्लाउज उतार के फेंक दिया. कुछ देर तक उनके गोर बदन को काली ब्रा में निहारने के बाद मैंने उनकी ब्रा को भी उनके बूब्स से अलग कर दिया.

माया की दोनों चुचियाँ मेरे हाथों में थी. उन मुलायम चूचियों को मैं लगातार दबाये जा रहा था. उनके मुँह से भो उफ्फ्फ्फ़….आः…इस्स्स्स… की आवाजें आ रहीं थी.

अब मुझसे भी कण्ट्रोल नहीं हो रहा था. मैंने उनके जिस्म से हर कपड़े को हटा कर उन्हें पूरा नंगा कर दिया और बिस्तर पे लिटा दिया. क्या लग रही थी वो? जैसे कोई अप्सरा. बाला की खूबसूरत थी माया. फिर जब मैंने पास आके उनकी चूत को सहलाया तो देखा वो पूरी गीली हो चुकी थी. मैंने उनकी चूत को मसलना शुरू किया. उनकी सिसकारियाँ भी तेज होने लगीं और वो अपनी एडियों से बिस्तर को रगड़ने लगीं.

फिर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा- अब और मत तड़पाओ, अंकुश! अब मेरी प्यासी चूत को फाड़ दो. जाने कितने दिनों से प्यासी है.

लेकिन अभी मैं उन्हें चोदने से पहले अपना लंड चुसवाना चाहता था. मैंने अपना लंड उनके होठों पे रख कर उसे चूसने के लिए कहा. उन्होंने भी थोड़ी देर उसे चूसा लेकिन फिर कहने लगीं- पहले मेरी चूत की प्यास बुझाओ! फिर अगली बार मैं तुम्हारे लंड को भी चूसूंगी. लेकिन इस बार जो कह रही हूँ वो करो!

मैंने उससे वादा माँगा की अगली बार वो सिर्फ लंड चूसेगी. मुझे डर था कि पता नहीं आगे माया ऐसा करेगी की नहीं.

माया बोली- वादा! अगली बार सिर्फ तुम्हारा लंड चूसूंगी. जो तुम बोलोगे, वही करूंगी.  लेकिन इस बार जो मैं कह रही हूँ वही करो.

फिर मैंने अपना लंड माया की चूत से सटा दिया और धीरे-धीरे  लंड को अन्दर पेलने लगा. बहुत दिनों से न चुदने के कारण चूत काफी टाईट हो गयी थी. उसे दर्द भी हो रहा था और मजा भी आ रहा था. माया फिर बोली- अंकुश! आज फाड़ दो मेरी चूत को. मेरी प्यास बुझा दो.

मैंने जोश में एक ही झटका देकर पूरा लंड उसकी चूत में समा दिया.

वो चिल्लाई….ऊउफ़्फ़्फ़्फ़….माआआ…. पेल दिया रे…..

मैंने माया के होठों से अपने होठ चिपका दिया और उसे दम लगा के चोदने लगा. लगातार मैंने 10 मिनट तक माया की चूत को भोसड़ा बनाने का काम जारी रख. वो भी मजे से गांड उछाल कर चुद रही थी. फिर मैं झड़ गया. और उसकी चूत भी साथ में ही पानी चुद कर शांत हो गयी.

फिर माया धन्यवाद बोलकर मुझसे लिपट गयी.

दोस्तों! कैसी लगी मेरी कहानी? मुझे मेल करके जरूर बताना.

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