अब मैंने उसे ध्यान से देखा तो अवाक रह गया. वो करीब बाइस साल की शादीशुदा युवती थी. पांच फ़ीट तीन या चार इंच हाइट रही होगी. उसने सुगापंखी और सफ़ेद रंग की मिक्स्ड साड़ी पहन रखी थी. जिसमे गुलाबी रंग का काम किया हुआ था और गुलाबी रंग की बॉर्डर भी थी…
सर्वप्रथम मैं सभी काम की देवियों यानी कि सभी स्त्रियों को नमन करता हूँ. मैं उनसे अनुग्रह करता हूँ कि वह हम भक्तों का लिंग रूपी प्रसाद ग्रहण करें और हम भक्तजनों पर वक्ष और योनि रूपी आशीर्वाद की बरसात करती रहें.
अब मैं आप सभी को अपना परिचय दे दूं. मेरा नाम आरव सेन है और साढे उन्नीस साल का लडका हूँ. मैं बिहार के भागलपुर जिले का रहने वाला हूँ और पटना में रह कर यहीं के एक प्रतिष्ठित सरकारी काॅलेज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा हूँ.
दोस्तों, मैं देखने में औसत हूँ और बहुत अच्छा या बहुत बुरा नहीं हूँ. मेरा लंड भी अच्छे साइज़ का ही है. अब आप लोग सोच रहे होंगे कि आखिर इस बंदे में अच्छा क्या है. खैर, इन बातों को छोडिये, ये सभी तो ईश्वर की कृपा से हैं.
मैं आपको बता दूं कि मैं बास्केटबॉल का बहुत अच्छा खिलाडी हूँ. मैं रिजनल लेवल पर भी दो बार बास्केटबॉल खेल चुका हूँ और मेरा स्टेमिना बहुत अच्छा है जो कि मेरी खुद की कृपा से है. मैं अंतर्वासना का विगत कई वर्षों से पाठक हूँ और इसकी लगभग सभी कहानियों को पढ़ कर उनका आनंद उठा चुका हूँ.
अन्तर्वासना की कहानियों को पढ़ते हुए मैं कल्पनाओं के सागर में डूब जाता हूँ और डुबकियाँ लगाता रहता हूँ. मेरी तंद्रा तभी टूटती है, जब मेरे लिंग से वीर्य की बाढ़ निकल कर बह जाती है. यह तो मेरे बारे में था. वैसे, अंतर्वासना पर कई बेहतरीन लेखक हैं, जिन्होंने अपने लेखन से इस साईट को हर जगह लोकप्रिय किया है.
यह मेरी प्रथम कहानी है तो पाठकों से अनुरोध है कि आप मेरी त्रुटियों पर ध्यान न देते हुए कहानी का आनंद लें. यह एक काल्पनिक कहानी है और इसमे मैंने उत्तेजक बनाने के लिए उन शब्दों का प्रयोग भी किया है, जिसे हमारे समाज में वर्जित माना गया है. अब देर न करते हुए मैं सीधा अपनी कहानी की शुरुआत करता हूँ।
मैं नये साल के शुभ अवसर पर अपने घर जाने के लिए निकला. आप सभी जानते हैं की जनवरी में हल्की – हल्की ठण्ड होती है तो मैं अपना काला सूट, सफ़ेद शर्ट, ब्लैक पैंट और एक्शन का ब्लैक शू पहन कर निकल पड़ा. चूंकि, मैं अपने घर भागलपुर ट्रेन से जाता हूँ तो मैं नियत समय से एक घंटे पहले स्टेशन पहुंच गया. टिकट लिया और प्लेटफार्म में प्रवेश कर गया.
मेरी ट्रेन शाम में 6 बजे थी तो मैं प्लेटफार्म पर इधर – उधर टहलने लगा. मैंने सोचा कि शायद किसी का दर्शन ही हो जाये. पटना का प्लेटफॉर्म बहुत बड़ा है. अब मेरी नजरें चूत को खोजने में लगी थीं. प्लेटफार्म पर बहुत सारी चूत थीं. कोई जीन्स में थी, कोई सलवार – सूट में, तो कोई साड़ी में थी. हर जगह चूत ही चूत थी.
मैं ऊपर से ही सभी के साथ नेत्र चोदन करने लगा. मुझे भाभी यानि साड़ी वाली औरतें ज्यादा पसंद आती हैं. दोस्तों, साड़ी में लड़कियां और भी सेक्सी लगने लगती हैं. अब मैं अपने पसंद की चूत खोजने लगा. कुछ देर बाद मैं प्लेटफार्म की एक सीट पर जा के बैठ गया. वहाँ साड़ी पहने हुए एक औरत बैठी थी.
अब मैं उसकी भीतरी बनावट का जायजा लेने लगा और आने – जाने वाली चूत का भी दर्शन करने लगा. नियमित समय पर ट्रेन आ गई. मैं स्टूडेंट हूँ तो किसी भी बोगी में चढ़ जाता हूँ. वैसे भी ये ट्रेन पटना से ही खुलती थी और एक ही स्लीपर बोगी थी जिसमें टीटी आता भी नहीं था. इसमें लोकल भी कम ही बैठते थे और जो भी बैठते थे वो अगले चार या पांच स्टेशन तक में उतर जाते थे.
अब मैंने भी आपातकालीन खिड़की के पास जा के अपनी जगह ले ली. ट्रेन खुल गयी. ट्रेन के खुलते ही सबसे पहले मैं बाथरूम गया और प्लेटफॉर्म वाली लड़कियों के नाम की मुठ मारी और वापस अपनी जगह पर आ कर आराम से बैठ गया.
वैसे तो सफ़र साढ़े पांच घंटे का था लेकिन ये बिहार है तो कोई भरोसा नहीं है आप छः या सात घंटो में भी पहुंच पाएंगे या नहीं. मैं निश्चिंत हो कर अपने स्लीपर बेड के सामने दिए गए चार्जर पॉइंट में चार्जर लगा कर आराम से बैठ कर अन्तर्वासना की कहनियों का आनंद लेने लगा.
अगले स्टेशन पर मैंने खिड़की से देखा कि एक औरत मेरे ही बोगी में चढ़ी. मैंने उसे बस एक नजर देखा और फिर से अपने स्मार्टफोन में बिजी हो गया. लेकिन जिस चूत की किस्मत में चुदना लिखा हो वो अपने आप ही उस लंड के पास चली ही जाती है.
ऐसा ही कुछ उसके साथ भी हुआ था. वो सीधे आ कर के मेरे सामने वाली सीट पर रुकी. मेरे सामने वाली सीट खाली थी और शायद मैं उसे सभ्य भी लगा था. फिर उसने अपना ट्रॉली बैग सीट नीचे खिसकाया और मेरी सामने वाली सीट पर बैठ गयी.
अब मैंने उसे ध्यान से देखा तो अवाक रह गया. वो करीब बाइस साल की शादीशुदा युवती थी. पांच फ़ीट तीन या चार इंच हाइट रही होगी. उसने सुगापंखी और सफ़ेद रंग की मिक्स्ड साड़ी पहन रखी थी. जिसमे गुलाबी रंग का काम किया हुआ था और गुलाबी रंग की बॉर्डर भी थी.
उसने साड़ी को अपनी नाभि से दो या तीन इंच नीचे बाँधा हुआ था. इसके अलावा उसने मैचिंग इयररिंग्स और नेकलेस के साथ – साथ हाई हील की सैंडिल भी पहन रखी थी. उसने ऊपर से पतली सी काले रंग की कार्डिगन डाल रखी थी.
उसके गोरे चेहरे की रंगत ऐसी लग रही थी मानो माखन में हल्का सिंदूर मिला दिया गया हो. उसने आँखों में हल्का सा काजल लगा रखा था. कमर तक लम्बे उसके बाल, छरहरा बदन और उन्नत वक्ष देखने में बहुत ही खूबसूरत लग रहे थे.
उसका चेहरा कुछ – कुछ फ़िल्म इंडस्ट्री की अभिनेत्री इलियाना डिक्रूज की तरह मिलता था. कुल मिला कर मानो साक्षात स्वर्ग से अप्सरा का ही आगमन हो गया हो. उसके बारे में क्या लिखूँ, बस मुझे कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं!
तेरे हुस्न की तारीफ मेरी शायरी के बस की नहीं,
तुझ जैसी कोई और कायनात में ही नहीं बनी,
तेरा मुस्कुरा देना जैसे पतझड़ में बहार हो जाये.
जो तुझे देख ले वो तेरे हुस्न में ही खो जाये,
आंखे तेरी जैसी समन्दर हो शराब का.
पी के झूमता रहे कोई नशा तेरे शबाब का,
होंठ तेरे गुलाब के फूल से भी कोमल है.
मित्रों, एक तो मैं अन्तर्वासना की कहानियां पढ़ – पढ़ कर वैसे भी गर्म हो चुका था और मेरे सामने हुस्न की मल्लिका विराजमान थी तो मेरी हालत आप सभी समझ सकते हैं.
मेरा मन तो किया कि अभी सीधे जाकर उसको पकड़ लूँ और पटक कर चोद दूँ. थोड़ा चीखेगी, चिल्लायेगी, फिर थोड़ी देर बाद तो ‘आह ऊह आह ऊह्ह’ करने ही लगेगी. लेकिन सहयात्रियों का भी डर था और भले ही यह मेरा प्रथम सहवास होने वाला था लेकिन मेरा मानना है की सहवास का आनंद तभी है, जब दोनों की सहमति हो अन्यथा आपको सहवास के उस परम सुख की अनुभूति नहीं मिल पायेगी.
इस कहानी का अगला भाग – चार्जर दिया चूत लिया भाग – 2
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