अभी तक आपने पढ़ा कि मेरी ट्रेन में एक खूबसूरत औरत चढ़ी थी और आकर मेरे बगल वाली सीट पर बैठ गयी थी. उसका फ़ोन चार्ज नहीं था तो उसने मुझसे चार्जर मांग कर अपना फ़ोन चार्ज करने लगी. अब हमारे बीच बातचीत होने लगी और जब मैं टॉयलेट गया तो उसने मेरे मोबाइल में ब्लू फिल्म देख लीं और आने के बाद फिर हमने साथ में ब्लू फिल्म देखी और गर्म गए. फिर मैंने उसकी साड़ी ऊपर करके उसकी चूत को सहलाया…
इस कहानी का पिछला भाग – चार्जर दिया चूत लिया भाग – 2
अब आगे…
वो लगातार सिसकी ले रही थी. मुझे बहुत मज़ा आ रहा था और शायद उसे भी खूब मज़ा आ रहा था. थोड़ी देर बाद मैंने उसकी पैंटी निकालने की कोशिश की तो उसने भी चूतड़ों को उठा कर पैंटी निकालने में सहयोग किया.
जब मैं उसकी पैंटी निकाल रहा था तो मुझे बाबा सिलतोड़नदास की प्रवचन पंक्तियों में से एक पंक्ति याद आ गयी. वो कुछ इस तरह से थीं, ‘आदमी की किस्मत और लड़की की पैंटी का कोई भरोसा नहीं है कभी भी खुल सकती है’.
दोस्तों, वो मेरे दायें तरफ खिड़की से सट कर बैठी थी. अब मैंने अपने दायें हाथ को उसके कंधों के ऊपर से ले गया और उसकी दाईं चूची को दबाने लगा और बायें हाथ से उसकी चूत को सहलाने लगा. इस दौरान मैंने महसूस किया कि उसकी चूत पर एक भी बाल नहीं थे, लगता था जैसे उसने आज सुबह ही सेविंग की हो. जब मैंने पूछा तो उसने कहा कि आज ही बनाया है. बड़े भी हो गए थे और फिर मायके में समय भी नहीं मिलता है.
अब मैं उसके चूत के दाने को अंगूठे से रगड़ने लगा और चूत की दोनों पंखुड़ियों के बीच में अपनी तर्जनी अंगुली को प्रवेश करा दिया. इससे वो तड़प उठी. उसका बदन अब उसके कंट्रोल से बाहर हो रहा था. उसके चूतड़ अब एक लय में हिलने लगे थे.
यह देख मैं भी जितनी तेजी से हो सकता था अपनी दोनों अंगुलियों को उसकी चूत में घुसा कर अंदर – बाहर करने लगा. अभी तक उसका ब्लाउज़ खुला नहीं था. इसलिए मैं ऊपर से ही जितने अच्छे तरह से उसकी चूचियों को मसल सकता था मसलने लगा.
दोस्तों, मैंने भी उसका ब्लाउज खोलने की कोशिश नहीं की क्योंकि ये रिस्की हो सकता था. उसने भी अब ऊपर से ही मेरे लंड को सहलाना शुरू कर दिया था. मेरा लण्ड तो पहले से ही अपने पूर्ण रूप में आ चुका था. उसका हाथ लगते ही वह एक दम से फुफकार उठा.
हमारी ये काम क्रीड़ा जारी ही थी कि तभी ट्रेन का अगला स्टॉपेज आ गया. ट्रेन रुकी तो उनमें से लोगों के उतरने की आवाज आई. यह सुन कर मैं झट से उठा और उनके उतरने के साथ ही मैंने इधर के भी दोनों दरवाजे बन्द कर दिये और कुछ खिड़कियां जो खुली थी उसे भी बंद कर दिया.
अब पूरी बोगी में सिर्फ हम दोनों के सिवा कोई नहीं था. सभी खिड़की और दरवाजे भी बंद थे. फिर वापस आ कर मैंने समय देखा तो पाया कि ट्रेन आधे घंटे लेट चल रही है. उस समय 8:30 हो गये थे यानि कि अब चुदाई करने के लिए हमारे पास लगभग साढ़े तीन घंटे का समय था.
अभी तक बगल वाले यात्रियों की वजह से न तो मैं उसे एक भी बार चूम पाया था और न ही उसकी चूत के दर्शन हुए थे. अब उसने भी कम्बल हटा दिया था लेकिन उसने अपनी साड़ी को नीचे कर लिया था.
अब मैं उसके सामने खड़ा था और वो मेरे सामने सीट पर बैठी हुई थी. फिर मैंने उसके हाथों को पकड़ा और झुक कर उसकी हथेली को चूम लिया. इसके बाद मैं वापस खड़ा हुआ और उसे अपनी ओर खींचा तो वो भी खिंची चली आई और आकर मुझसे इस तरह लिपटी जैसे कोई लता किसी पेड़ से लिपट जाती है.
फिर मैंने उसकी आँखों में देखते हुए अपने लबों को उसके अधरों पर रख दिया. दोस्तों, वह मेरी जिंदगी का प्रथम चुम्बन था. उस एहसास मैं कभी नहीं भूल सकता. आज भी मुझे जब उनकी याद आती है तो मेरे होंठ इस उम्मीद में सूख जाते हैं और थरथराने लगते हैं कि वो आये और अपने उसी गुलाब की पंखुडी की तरह कोमल अधरों को फिर से मेरे लबों पर रख दे और हम दोनों ही इस दुनिया के तमाम कठिनाईयों से दूर उस प्रेम की दुनिया में खो जाएँ.
दोस्तों, उसके गुलाबी होंठ बहुत ही कोमल थे. उस दिन मुझे पता चला कि इन अधरों को मय से भी अधिक नशीला यूँ ही नहीं कहा गया है. अब हम दोनों की आँखें अपने आप ही बंद होती चली गयी. दोस्तों, मुझे तो अपनी कुछ खबर ही नहीं रही. मैं तो अपने होश ही खो बैठा था.
उसके अधरों के नशे में मैं पूरी तरह खोता चला गया था. लगभग बीस मिनट तक मैं उसके होंठों को चूमता रहा. दोस्तों, जब मेरी तंद्रा टूटी तो मैंने अपने हाथ उसके पीठ पर चलाने शुरू कर दिये. उसकी पीठ बैकलेस ब्लाउज पहनने की वजह से वैसे भी पूरी तरह से नंगी थी.
कुछ देर बाद मैंने हुक खोल कर उसके ब्लाउज को भी निकाल दिया. जिससे उसकी बत्तीस की साइज की चूचियां आजाद हो गईं. उसके चूचे एक दम टाइट और उठे हुए थे. वो पूरी तरह से गोल थीं. ऐसा लग रहा था, मानो हैंडबॉल को आधा काट कर लगा दिया गया हो लेकिन जब मैंने उन्हें दबाना शुरू किया तो रुई की तरह मुलायम थीं और बड़ी ही आसानी से दब गईं थी.
थोड़ी देर तक उसकी चूचियों को दबाने के बाद मैंने अपने लबों को उसके लबों से हटा कर उसकी चूचियों पर लगा दिया. जिससे वो ‘आह आह ऊह ऊह’ करके सिसकारियां भरने लगी. अब मैं बारी – बारी से उसकी दोनों चूचियों को दबाने और चूसने लगा. कभी – कभी मैं उसके निप्पल को हल्के दांतो से काट भी लेता था तो उसकी सिसकारी में दर्द भरी आह भी निकल जाती थी.
अब वह मेरे बालों को नोंचने लगी थी और मेरे सर के बालों को पकड़ कर मुझे अपने चूचियों पर जोर से दबाने लगी. धीरे – धीरे वह अपने चुदास की चरम सीमा पर पहुंच रही थी. मैंने भी अब देर न करते हुए अपने पैंट को खोला और अपनी चड्डी को उतार दिया. मेरी शर्ट और बनियान तो उसने मेरे पहले ही उतार दी थी.
अब मैं सीट पर बैठ गया और वो नीचे बैठ गयी. फिर उसने बिना कुछ कहे सीधे मेरे लंड को मुँह में ले कर चूसना शुरू कर दिया. वह कमाल का लंड चूसती थी. दोस्तों, वह लन्ड चूसने में एक दम माहिर थी. अगर वह लंड चूसने की माहिर खिलाड़ी न होती तो 6 इंच के लंड को पूरी तरह से मुंह में कैसे ले सकती थी.
जब वह मेरे लंड को पूरा निगल कर सर को आगे – पीछे करने लगी तो मैं सीधे जन्नत की सैर करने लगा. फिर जब मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने उसके बालों को पकड़ा और उसके मुंह को ही चोदने लगा. इस दौरान वह ‘गूँ – गूँ’ ही करती रह गयी. कुछ देर में मेरे वीर्य से उसका मुंह पूरी तरह से भर गया. अब वह मेरे वीर्य को पी गयी और लंड को चाट चाट कर साफ कर दिया.
इसके बाद वह फिर से मेरे लंड को चूसने और चाटने लगी. उसकी इन हरकतों की वजह से मेरा सुस्त हो चुका लण्ड फिर से उत्तेजित हो कर अपने पूरे साइज में आ गया. जब लन्ड खड़ा हो गया तो वह सीट पर बैठ गयी.
अब मैंने उसके पैरों के अँगूठे से चूसने और चाटने की शुरुआत करते हुए उसकी चूत के पास अपनी जीभ को ले गया. वहां पहुंचते ही मेरी नाक में अजीब सी कसैली गंध समा गई और मुझे उबकाई सी आने लगी.
मुझे इस हालात में देख कर उसने कहा, “तुम्हारा पहली बार है क्या?” तो मैंने हाँ में जवाब दिया. इस पर उसने कहा कि इसी वजह से है. जब आदत लग जाएगी तो खूब चाटोगे. कोई बात नहीं रहने दो.
इस कहानी का अगला भाग – चार्जर दिया चूत लिया भाग – 4
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