गुलाबी चूत में, लंड से चित्रकारी

एक कलाकार के लिए उसकी कला ही उसका जीवन होती है. उसकी प्रत्येक कृति  में वो खुद ही समाहित होता है. लेकिन अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण कृति की रचना करते समय जय के हाथ काँप रहे थे. इस रचना के पूर्ण होने के बाद जय निर्णय ही नहीं ले पा रहा था कि उसे कुछ हासिल हुआ है या उसने सब खो दिया है…..

 

ये कहानी मेरे बचपन के मित्र जय की है. जय 8 साल की उम्र में ही अपाहिज हो गया था. एक एक्सीडेंट में उसकी एक टांग काटनी पड़ी थी. लेकिन अपने पिता की देखरेख में जय ने खुद को स्वावलंबी बना लिया था. उसे किसी चीज के लिए किसी की मदद की आवश्यकता नहीं पड़ती थी.

जय को चित्रकारी का बड़ा शौक था. वो अक्सर किसी न किसी का पोट्रेट बनाया करता था. कॉलेज की पढाई पूरी होने तक जय के माता-पिता गुजर चुके थे. लेकिन चित्रकारी के बलबूते जय की रोजी-रोटी चल रही थी, बल्कि यूँ कहें कि वो अच्छा कमा लेता था. 25 वर्षीय जय अपनी भावनाओं को कैनवास पे रंगों के माध्यम से व्यक्त करता था. उसके सारे चित्र रंगीन ही होते थे, उत्साह के रंगों से लबरेज. लेकिन तमाम तस्वीरों में एक तस्वीर रंग विहीन भी थी. ये तस्वीर वीणा की थी.

वीणा शहर के सबसे रईस व्यापारी कुंदन जी की बेटी थी. उछ्रिन्खल, हवा के झोंके की तरह, बेपरवाह, जिन्दगी को अपने तरीके से जीने वाली. वीणा का रूप रंग बेहद आकर्षक था. पहली नजर में जो भी देखता आकर्षित हो जाता. सो हमारे जय भैया भी हो लिए. प्रथम आकर्षण का खुमार ही ऐसा होता है की ह्रदय में मीठा दर्द होने के बावजूद व्यक्ति ज्यादा प्रसन्नचित्त रहता है.

वीणा और जय एक ही कॉलेज में पढ़ते थे. कॉलेज के वार्षिक समारोह के अवसर पे आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में वीणा को एक डांस ग्रुप के साथ डांस करना था और जय की चित्रों की एक थीम बेस्ड प्रदर्शनी भी इस समारोह का हिस्सा थी.

समारोह के मुख्य अतिथि के पास समय की कमी थी तो उन्होंने डांस देखने के बजाय जय के चित्रों की प्रदर्शनी देखने की इक्षा व्यक्त की. वीणा के डांस ग्रुप को ये बात बहुत बुरी लगी और जय से इर्ष्या भी हुयी. लेकिन जब वीणा ने जय की चित्रकारी देखी तो बस देखती ही रह गयी. उसने जय से हाथ मिलाया और उसके काम की सराहना की. जय की लगा मानो सारे जहाँ की खुशियाँ मिल गयी हो.

अगले दिन वीणा ने जय से अपना पोट्रे बनाने को कहा तो जय तैयार हो गया. वीणा ने जय के घर का पता ले लिया. सन्डे को मिलना तय हुआ. जय ने सुबह से ही सारी तैयारी कर रखी थी.

ठीक 10 बजे वीणा की कार जय के घर के आगे रुकी. वीणा ने कार से उतर कर एक नजर जय की कालोनी के चारों ओर डाली. उसने नीली चुस्त जींस पहनी हुयी थी और धानी रंग का ऊंचा टॉप, जो उसके उभरे हुए स्तनों से थोडा ही नीचे तक था. उसकी नाभि के चारों ओर एक टैटू गुदा हुआ था और बीच में एक चमकता हुआ नग था. वीणा ने कार से एक बड़ा सा थैला निकला और जय के दरवाजे पे दस्तक दी.

जय ने दरवाजा खोला. उसने देखा की ख्वाबों में वो जिसके दुल्हन के रूप में अपने दरवाजे से प्रवेश करना देखा करता है आज वो जींस और टॉप में घर के अन्दर प्रवेश कर रही.

वीणा ने देखा कि जय ने अपाहिज होने के बावजूद घर को काफी करीने से सजा रखा है. औपचारिक बातें होने के बाद जय ने वीणा से पूछा – तुम किस तरह का पोट्रे बनवाना चाहती हो?

वीणा ने कहा- ऐसा जो मुझे परिभाषित कर सके. जिसमे सिर्फ मैं रहूँ. मेरी आजादी रहे. किसी तरह का कोई भौतिक बंधन न रहे.

जय ने एक पल को सोचा. फिर बोला- लेकिन पोट्रे के समय स्थिर रहना पड़ता है वो भी काफी देर तक.

वीणा- वो मैं कर लूंगी.

फिर वीणा की नजर आँगन में पड़े एक सोफे नुमा झूले पे पड़ी. वीणा ने कहा क्या इस झूले पे झूलते हुए तुम मेरा पोट्रे बना सकते हो?

जय- हाँ ! क्यों नहीं? लेकिन उस झूले पे ही क्यों?

वीणा- वो झूला मेरे उड़ने का प्रतीक होगी.

फिर जय ने चित्रकारी का सारा सामान और कैनवास को आँगन में रख दिया. वीणा ने इसमें उसकी मदद की. वीणा का एक एक कृत्य जय को सपनों सरीखा लग रहा था.

जब सारी चीजें अपनी जगह व्यवस्थित हो गयीं तो वीणा झूले के पास चली गयी. जय अपने स्टूल पे बैठ गया. तभी वीणा ने जय से पूछा- जय! तुम समझ तो गए न, कि मैं तुमसे कैसी तस्वीर बनवाना चाहती हूँ? तुमसे हो पायेगा न?

जय- हाँ! मुझे ऐसा लगता तो है.

तब वीणा ने अपने जूते, फिर अपना टॉप उतार दिया. वो अपनी जीन्स के बटन खोल ही रही थी कि जय ने उसे टोका- ये क्या कर रही हो?

वीणा ने कहा- मैंने कहा था न? मुझे कोई भी भौतिक बंधन नहीं चाहिए.

जय के तो पसीने छूट गए……अभी तो वीणा फिर भी गहरे लाल रंग की ब्रा और जीन्स में खड़ी थी. लेकिन जो वो कह रही थी उसके हिसाब से वो पूरी तरह नग्न हो जाना चाहती थी.

वीणा ने जय की कठिनाई भाँप ली. वो धीरे धीरे चलते हुए, एकटक जय को देखते हुए जय के पास आई. उसने स्टूल पे बैठे जय के कंधो को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और थोडा झुक कर जय के कानों में फुसफुसाई – क्या हुआ चित्रकार महाशय? पसीने क्यों छूट रहे हैं?

जय ने कहा- तुम कपड़े पहने रहो. म्ममैं.. वैसे ही बना ल..लूँगा…

वीणा की मुस्कान और कातिल हो गयी. उसने अपनी बाहें जय के गले में लपेटते हुए कहा- तुम्हें कैसे पता मेरे स्तन कैसे हैं?…..मेरे पेट का निचला हिस्सा कैसा है?… ये कह कर वीणा जोर से हंसी.

फिर वो गंभीर हो गयी. वो जय के पास गयी और जय के पास जाकर उसने जय का के गालों पे एक किस लिया और कहा- तुम घबराये हुए हो? लेकिन मुहे पता है तुम्हें कैसे रिलैक्स करना है.

वीणा ने आगे कहा- जय! क्या मैं सुन्दर नहीं हूँ?

जय ने कहा- तुम बहुत सुन्दर हो वीणा.

वीणा- तो फिर तुम मेरा ये सुन्दर शरीर देखने के लिए उत्सुक क्यों नहीं हो? वो भी तब, जब इसमें मेरी इच्छा निहित है.

जय ने कहा- आजतक मैंने किसी भी महिला को पूर्ण नग्न नहीं देखा!

अब वीणा ने जय के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लिया और उसके होठों से अपने होंठ चिपका दिए. जय तो मानो मदहोश होने लगा. उसने अपने हाथों से कस के वीणा को पकड़ लिया. कुछ देर तक जय को चूमने के बाद वीणा ने जय से कहा- जय! तुम्हें मेरे होंठ कैसे लगे?

जय- ऐसे जैसे दो गुलाब के फूल. ऐसे जिनका एहसास मैंने पहले कभी नहीं किया.

अब वीणा ने झट से अपनी ब्रा उतार दी. और अपने गोल, श्वेत स्तनों पे जय का चेहरा सटा दिया. एक पल के लिए तो जय को मानो झटका लगा. उसने कभी ये कल्पना भी नहीं की थी. जय ने वीणा के कमर को कस कर पकड़ लिया और उसके स्तनों को चूमने लगा. फिर अपने हाथों से उन्हें छूने लगा. लेकिन वीणा ने अपनी एक चूची जय के मुँह में डाल दी. जिसे जय अब बिना किसी संकोच के चूस रहा था. वीणा श्हश्ह्ह…सि…एईईई… की आवाज निकाल रही थी.

फिर वीणा ने जय का कुरता निकाल दिया और उसके सीने को चूमने लगी. फिर उसने जय का पायजामा भी उतार दिया. यहाँ तक तो जय बिलकुल यंत्रवत व्यवहार करता रहा. लेकिन जब वीणा ने जय का अंडरवियर उतारना चाहा तो जय ने रोक दिया. तब वीणा ने अंडरवियर के ऊपर से ही जय के लंड को चूमना शुरू किया. कुछ देर बाद जय ने खुद ही अंडरवियर नीचे कर दिया. जय ने आखें बंद कर ली थीं. वीणा ये देखकर मुस्कुरा दी. फिर उसने जय के लंड को अपने मुँह में लेकर मुखमैथुन शुरू कर दिया. जय का लंड इस मुखमैथुन से अपने उत्तेजित रूप में आ गया.

उसका आकार देखकर वीणा ने कहा- इसे देखकर तो लगता है कि थोड़ी बहुत चित्रकारी इसे भी आती होगी. और रंगीन न सही सफ़ेद रंग तो इसमें खूब भरा होगा.

कहकर वो हँस दी. वो सहारा देकर जय को झूले तक ले आई और अपनी जीन्स और पैंटी को एक साथ ही उतार कर पूरी नग्न हो गयी. वो सोफे पे लेट गयी और जय का चेहरा अपनी चूत पे दबाने लगी. जय उसका इशारा समझ गया और वीणा की गुलाबी चूत की चुसाई करने लगा. जब वीणा की चूत पूरी गीली हो गयी तो वीणा ने कहा- जय! क्या तुम मेरी इस गुलाबी गुफा में अपने उस मांसल कूची से चित्रकारी करोगे?

जय ने तुरंत ही वीणा की टांगों को फैलाया और वीणा की चूत पे एक हल्की थपकी देता हुआ अपने लंड को वीणा की चूत पे सेट किया. एक ही धक्के में जय का लंड वीणा की चूत की दीवारों पे अपने निशान बनाते चला गया. वीणा ने आखें और होठों को भींच लिया, लेकिन फिर भी उसकी एक हल्की चीख निकल ही गयी.

कुछ धक्कों के बाद वीणा नीचे से अपने चूतड़ों को उछाल कर जय को सहयोग दे रही थी. जजी लगातार अपने धक्कों की स्पीड बनाये हुआ था. वीणा को ये लयबद्ध चुदाई काफी आनंदित कर रही थी. उसकी सिसकारियाँ बता रहीं थी कि अब वो जल्दी ही झड़ने वाली है.

उसने जय को अपने धक्कों की स्पीड तेज करने को कहा. जय ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी फिर दोनों एक साथ स्खलित हो गए.

दोनों थक कर कुछ देर ऐसे ही लेटे रहे. फिर बाथरूम गए. दोनों एक साथ ही नहाये और वापिस से कैनवास और झूले वाली जगह पे आ गए. दोनों ने अभी तक कोई कपड़े नहीं पहने थे.

वीणा झूले पे बैठ कर झूलने लगी और जय के हाथ तेजी से उसकी तस्वीर उकेरने में लग गए. क्या शानदार चित्र बनाया जय ने उस दिन. वीणा बहुत खुश हुयी और ख़ुशी के मारे जय को चूम लिया.

वीणा ने और जय ने अपने कपड़े पहन लिए. जब वीणा चलने को तैयार हुयी तो जय ने कहा- वीणा क्या तुम हमेशा के लिए यहीं नहीं रुक सकती?

वीणा- जय! ये संभव नहीं है. जितना मैंने तुम्हें जाना है. उस हिसाब से हम दोनों के जीने का तरीका बिलकुल अलग है. हम अच्छे दोस्त तो बन सकते हैं. लेकिन अच्छे जीवन साथी नहीं. सॉरी मैं तुमसे प्रेम नहीं करती.

जय को जैसे झटका लगा. उसने जोर से कहा- तो फिर ये सब क्या था?

वीणा- टेक इट इजी! जय. ये तुम्हें कम्फर्ट फील कराने के लिए बनाया गया एक शारीरिक सम्बन्ध मात्र था. प्रेम सम्बन्ध नहीं? और वैसे भी ये मेरा पहला शारीरिक सम्बन्ध नहीं था. तुम मुझसे अच्छी लड़की डिजर्व करते हो.

ये कहकर वीणा चली गयी. फिर उन दोनों की कभी मुलाकात नहीं हुयी. वीणा के जाने के बाद जय ने उसकी एक और तस्वीर बनायीं लेकिन उसमे रंग नहीं भरे.

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