सुशीला बात करने के साथ अपना काम भी किये जा रही थी। उसकी बातों से मेरा लंड कड़क होता जा रहा था। मैं अपने शॉर्ट्स में उसे उठने से रोकने का असफल प्रयत्न कर रहा था। सुशीला ये देखकर हंसने लगी। उसने कहा- आज तो बाथरूम भी खाली नहीं है। आज इसे कैसे शांत करोगे??????
सभी अन्तर्वासना के पाठकों व पाठिकाओं को मेरा नमस्कार!! मेरा नाम निखिल है और इस समय मैं अपने गाँव से आकर कानपुर में रहता हूँ। ये कहानी मेरे बी टेक द्धितीय बर्ष की है। कहानी बिलकुल सच्ची है। मेरा परिवार तो गाँव में ही रहता था और यहाँ कानपुर में मेरा कोई रिश्तेदार भी नहीं था जिसके यहाँ रहकर मैं पढ़ाई कर सकता। इसलिए मै एक फ़्लैट लेके रहता था।
अकेले किराया अफोर्ड न करना पड़े इसलिए मेरे साथ मेरे 2 क्लासमेट भी रहा करते थे। हममें से किसी को पूरा खाना बनाना नहीं आता था इसलिए मैने एक कामवाली ऑन्टी को रखा था, जो हमारे लिए खाना बनाती थी ।
अब मै अपनी आंटी के बारे में बता दूं। वो एक 32 साल की शादीशुदा महिला है। पर देखने में एक दम माल लगतीं है। उनके स्तन काफी बड़े से थे। मेरे अन्दाज से उनका फिगर 36- 32- 38 होगा। चलते समय उनकी गांड ऐसे हिलती कि कोई भी देख ले तो उसका लंड खड़ा हो जाये। जब भी वो आती थी मैं उनको देख के स्माइल कर देता था।
उनको काम करते हुए एक साल हो गया था । लेकिन इस एक साल में सिवाय उनकी चूचियाँ और गांड निहारने के मैं कुछ नहीं कर पाया था। कॉलेज में भी एक से एक मस्त मॉल थीं लेकिन हम जैसे लोअर मिडिल क्लास के लौंडों को वो भाव नहीं देती थीं। इसलिए उन्हीं के नाम का मुठ मार लेता था।
आंटी के नाम का भी गाढ़ा फव्वारा एक दो बार निकला था। जब किसी दिन बर्तन मांज कर उठते हुए उनकी साड़ी उनकी गांड की दरार में फंसी होती या झुक कर झाडू लगाते हुए उनकी आधी चूचियों के दर्शन हो जाते।
एक दिन मुझे कॉलेज जाने का मन नहीं किया तो मै घर पे ही रुक गया। अपना बेतरतीब बिखरा कमरा सही करने के बाद मै अपने कपड़े धुल रहा था। मेरे बाकी के क्लास मेट कॉलेज गए थे। जब आंटी आई तो उन्होंने पूछा- खाने में क्या बनेगा?
मैंने कहा- जो भी हो बना दो।
उन्होंने बहुत जल्दी से खाना बना लिया। वो काफी तेजी से हर काम निपटा लिया करती हैं। पर मैने बचपन से ही घर का कोई काम नहीं किया या सीखा था इसलिए मुझे उस दिन भी कपड़े धोने में दिक्कत हो रही थी। कामवाली सुशीला आंटी ने जब मेरी परेशानी देखी तो उन्होंने कहा- मै कपडे धुल दूं?
मैंने कहा- नहीं आपको और भ जगह काम करने जाना होगा। मैं कर लूँगा।
वो मेरे पास आकर बोलीं- अपनी चड्ढी तो आप से संभालती नहीं। कपड़े क्या ख़ाक धुलेंगे?
दरअसल मैंने उस दिन सिर्फ शॉर्ट्स पहने हुए थे और उसके नीचे अंडरवियर नहीं पहना था। कपड़े धोने की उलझन में मेरा लंड मेरे शॉर्ट्स से बाहर झाँकने ल्ल्गा था। सुशीला आंटी का इशारा मेरे झांकते लंड की ओर ही था। मैंने झेंप गया और तुरंत से अपने कपड़े सही किये।
सुशीला आंटी ने मेरी तरफ एक शरारती मुस्कान फेंकी और मेरे हाथों से मेरे धुलने वाले कपड़े ले लिए। इत्तेफाक से उनके हाथों मेरा पहला कपड़ा मेरी फ्रेंची ही आ गयी। मैं वहीँ खड़ा था। उन्होंने मेरी फ्रेंची मेरी ओर स्ट्रेच करते हुए पूछा- इतने छोटे अंडरवियर में आपका आ जाता है?
आज मुझे सुशीला कुछ अलग मूड में ही लग रही थी। मैंने भी जवाब दिया- मेरे लिए तो ये काफी है लेकिन आपके लिए आपका ब्लाउज काफी नहीं है।
सुशीला का ध्यान अपने ब्लाउज से झांकते चूचियों पे गया। उसने अपना पल्लू सही करते हुए अपनी उसी कातिल मुस्कान के साथ कहा- कहाँ? अब तो इनकी खुराक इन्हें मिलती ही नहीं। वरना पहले तो ये काफी बड़े थे।
मैंने पूछा- क्यों क्या हुआ? तुम्हारा पति किसी और के ब्लाउज में अटक गया क्या?
सुशीला- वो मुआ तो सिर्फ दारू की बोतल में ही अटक कर रह गया है। और कहीं क्या अटकेगा?
सुशीला बात करने के साथ अपना काम भी किये जा रही थी। उसकी बातों से मेरा लंड कड़क होता जा रहा था। मैं अपने शॉर्ट्स में उसे उठने से रोकने का असफल प्रयत्न कर रहा था। सुशीला ये देखकर हंसने लगी। उसने कहा- आज तो बाथरूम भी खाली नहीं है। आज इसे कैसे शांत करोगे?
उसकी बात सुनकर तो मानो मुझे करंट सा लगा। मै समझ गया कि इस वक़्त सुशीला को सच में एक लंड की दरकार है।
मैने कहा- तो तुम्हीं शांत कर दो न। अपनी भी और मेरी भी प्यास।
सुशीला- क्या बोले आप?
इतना कहते हुए वो मेरे पास आ गयी। मेरी भी हिम्मत बढ़ गयी। मैंने एक झटके में उनके स्तनों को पकड़ लिया और बाथरूम में ही उन्हें किस करने लगा। पहले तो उन्होंने छूटने की कोशिश की और वो मना करती रही। लेकिन आग तो उधर भी लगी थी तो वो भी साथ देने लगी।
कुछ देर के बाद वो बोली- मैं तुम्हें पसंद करती हूँ। अगर मेरा मर्द मुझे संतुष्ट भी करता रहता फिर भी मैं तुम्हें चाहती।
फिर तो मै उनको किस करते हुए रूम में ले गया और किस करते हुए ही उनके कपड़े उतारने लगा। लेकिन उसके पहले अपने कपड़े। पहले साड़ी फिर ब्लाउज, फिर ब्रा और फिर पेटीकोट। पैंटी तो उन्होंने पहनी ही नहीं थी। बिलकुल नंगी शानदार फिगर वाली सुशीला मेरे सामने खड़ी थी। और खड़ा था पूरे आकार में मेरा लंड। जो करीब 7” का रहा होगा।
मैंने सुशीला को बेड पे लिटा दिया। उनकी टांगों को खोल दिया। फिर उनकी चूत में ऊँगली करने लगा। अब वो बहुत गरम हो गयी थी और बोली की- अब जल्दी से डाल दो! अब रहा नहीं जाता।
लेकिन मै अभी उनको तड़पाना चाहता था। मै उनके स्तनों को पी रहा था। उसमे से हल्का सा दूध निकल रहा था। सुशीला ने मेरे लंड को कस के पकड़ लिया। फिर जब वो ज्यादा ही गरम हो गयी, तब मैंने अपना लन्ड उनकी चूत पे रखा। एक ही झटके में पूरा लंड मैंने उनकी बड़ी सी चूत के अंदर डाल दिया।
लेकिन शायद बहुत दिनों से चूत के रास्ते में कोई लंड घुसा नहीं था इसलिए वो चिल्ला पड़ी- उई माँ! फट गयी रे! अरे जरा जरा धीरे डालना था न!
थोड़ी देर मैं रुक गया। फिर धीरे-धीरे वो मेरा साथ देने लगी। कसम से उनकी चूत इतनी गरम थी की 5 मिनट बाद ही मैं झड़ गया।
मैंने लंड निकाल कर उनसे चूसने को कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया। मैं समझ गया। मैं बाथरूम में गया और अपना लंड धुलकर आया। थोड़ी सी ना-नुकुर के बाद वो मेरा लंड चूसने लगी।
अब दूसरा राउंड शुरू हो गया। इस बार वो उपर और मैं नीचे। सुशीला आंटी जम कर मेरे लंड पे कूदी। अपना पानी झड़ने के बाद ही उसने मेरे लंड की सवारी बन्द की। हम दोनों ने थोड़ी देर सुस्ताने के बाद अपने कपड़े पहने।
सुशीला ने मेरे कपड़े धुले और चली गयी। उस दिन के बाद से फिर तो जब भी मौका मिलता हम जम के चुदाई करते।
कैसी लगी आपको मेरी स्टोरी बताना जरूर!