फिर जब वह लौट के आया तो उसने छोटी चड्डी पहन रखी थी. उसके ऊपर कुछ नहीं पहना था. वह मेरे पास आकर बैठ गया. पलभर उसने मुझे देखा और मेरे बेल्ट में हाथ डालकर मुझे अपनी ओर खींच लिया. उसका एक हाथ मेरे बेल्ट में था और दूसरे हाथ से मेरी कमीज़ के बटन खोलने लगा. फिर उसने मेरी शर्ट उतारकर उसने फेंक दी और अब बेल्ट खोलने लगा…
उस रात बहुत ज़ोरों की बारिश हो रही थी. ऑफिस से निकलते – निकलते मुझे काफी देर हो गई थी. लगभग 11 बज चुके थे और रास्ता सुनसान था. पानी ज़ोरों से बरस रहा था. मैं छाता पकड़े घर की ओर बढ़ने लगा. मन में ख्याल आ रहा था कि काश कोई लिफ्ट मिल जाये तो रास्ता आराम से कट जाए.
तभी पीछे से किसी बाइक के आने की आवाज़ सुनाई दी. हर तरफ अंधेरा था तो मैं चेहरा देख न सका पर मैंने गाड़ी को रोकने की कोशिश की. फिर थोड़ा आगे जाकर गाड़ी रुक गई. मैं गाड़ी की तरफ दौड़ने लगा. दौड़ते – दौड़ते मेरे हाथ से छतरी छूट कर उड़ गई. वह लड़का जोर से हँस पड़ा. फिर मैंने कहा, “आप मुझे चौक तक छोड़ पाएंगे?” वो बोला, “हाँ हाँ क्यों नहीं, पर तेरा छाता तो उड़ गया.”
मैंने कहा, “आप हंस रहे है? मेरे कागज़ भीग जाएंगे तो कल ऑफिस में डाँट पड़ेगी.” फिर वह मुस्कुराया और मेरे बेल्ट में हाथ डालकर मुझे अपनी ओर खींच लिया. इसके बाद उसने मेरे शर्ट के 3 बटन खोल दिये और कागज़ अंदर डाल दिया और बोला, “ले! अब नहीं भीगेंगे.”
मैं पलभर को ठंडा पड़ गया था. उसकी गीली उँगलियाँ जब छाती को छूकर पेट तक गईं तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे. फिर मैंने झट से बटन लगा लिया. वो बोला, “आ अब बैठ जा.” फिर थोड़ा देर रुक कर वो बोला, “बैठा?”
मैंने कहा, “हाँ, सॉरी आपको परेशानी उठानी पड़ी.”
इस पर वो बोला, “अबे इतना फॉर्मल क्यों है? कोई नहीं.” अब गाड़ी चल पड़ी थी और मैं उसे गौर से देखने लगा था. उसने काला जैकेट पहना हुआ, जो हवा से उड़ रहा था और पीछे से ऊपर हो रहा था. उसकी पीठ का कभी कोई नंगा हिस्सा दिख जाता था, जिस पर पानी टपक जाता.
वो बोलता रहा, “इतनी रात को पैदल क्यों आ रहा था? किसी दोस्त – वोस्त को बुला लेता. कुछ महीने पहले कुछ लोगों ने इसी सड़क पर मेरे एक दोस्त की पिटाई करके उसे लूट लिया था.”
फिर थोड़ा रुक कर मैं बोला, “नाम क्या है आपका?”
वो बोला, “रिषी, और तेरा?”
मैं बोला, “मैं मेघ.”
मैं उसकी जीन्स को देखता रहा. जो काफी जगह फटी हुई थी. हल्के बाल थे उसके पैरों पर और फटी जीन्स से पानी अंदर जा रहा था.
कुछ देर बाद चौक आ गया और मैं गाड़ी से उतर गया. उसने फिर मेरे बेल्ट में हाथ डालकर मुझे अपनी ओर खींच लिया और बोला, “कल से किसी के साथ आया कर.” इतना कह कर वह वहां से निकल गया, लेकिन मैं पल भर वहीं खड़ा रहा.
अगली शाम जब मैं ऑफिस से निकला तो पूरा रास्ता उसी का ख्याल आता रहा. कौन होगा, कहां रहता होगा, स्ट्रेट है या गे है पता नहीं? तभी अचानक बारिश शुरू हो गई और मैं पूरा भीग गया. कल रात भीगने से जुकाम हो चुका था. अब मैं फिर भीग गया था.
मैं थोड़ा आगे तक चलता रहा. एक जगह पानी जमा था. वहां मैंने मस्ती में पैर मार दिया तो ठेस लग गई. मैं चीख उठा. फिर मैं रास्ते के किनारे एक पेड़ तले खड़ा हो गया. मैं चल नहीं पा रहा था. तभी रिषी फिर उसी रास्ते से आता हुआ दिख गया. मैंने सोचा कि आज उसकी मदद नहीं लूंगा.
उसने पास आकर गाड़ी रोकी और बोला, “साले, तू फिर आज अकेला है. चूतिया है क्या बे लवंडूँ?”
यह सुन कर मैंने उससे झूठ ही बोल दिया, “अरे तुम क्यों परेशान होते हो रिषी? दोस्त आ रहा है मुझे लेने.” यह सुन कर वह बोला, “चल तब तक मैं साथ रुक जाता हूँ.”
फिर वह गाड़ी से उतरा और मेरे पास आकर खड़ा हो गया. आज उसने सिर्फ बनियान पहनी हुई थी. वह काफ़ी खुली – खुली सी थी. उसमें से उसकी कमर तक बदन दिख रहा था. उसका गठीला गोरा भीगा हुआ बदन और छाती पर हल्के – हल्के बाल थे. फिर उसने जेब से सिगरेट निकाली और पीने लगा. फिर वह मेरी तरफ सिगरेट करते हुए बोला, “ले तू भी एक कश मार ले. ठंड मिट जाएगी.”
मैंने सिगरेट पी. तब जाकर कुछ गरमाहट आयी. फिर मैं छींकने लगा. यह देख वह बोला, “क्यों बे? कल रात क्या भीगा, जुकाम पकड़ लिया? नाजुक लौंडा.” यह कहते हुए उसने मुझे अपनी ओर खींच लिया और मेरा सर अपनी बाजु में पकड़ लिया. मेरे पैर में चोट लगी थी तो मैं हल्का सा चीख पड़ा.
अब वो बोला, “क्या हुआ बे?”
मैं – कुछ नहीं.
वो – तो चीखा क्यों? क्या हुआ है पैर में?
मैं – ठेस लगी है.
वो बोला – दिखा.
इतना कह कर उसने मेरा जूता उतारा और फिर वह ज़मीन पर बैठ गया. उसने मेरा पैर अपनी गोद में रख लिया. मेरे अंगूठे से खून निकल रहा था. फिर उसने अपनी बनियान उतारी और पैर पर बाँध दी.
यह देख मैंने कहा – अरे खराब हो जाएगी बनियान और क्या खुले बदन गाड़ी चलाओगे इस ठंड में?
मेरी बात का उसने कोई जवाब नहीं दिया और खड़ा हो गया. फिर उसने मेरा हाथ अपने कंधे पर रख लिया और मुझे बाहों में उठा लिया और गाड़ी पर बिठा दिया. इसके बाद उसने गाड़ी शुरू की और हम निकल पड़े.
गाड़ी मेरे घर के सामने से आगे निकल गई. मैं अकेला ही रहता हूँ तो कोई पूछनेवाला नहीं था. फिर गाड़ी एक छोटे से घर के आगे आकर रुक गई. रिषी उतरा और उसने मुझे खड़ा किया. फिर आगे जाकर दरवाज़ा खोला और वापस आया. अब वो मुझे उठाकर अंदर ले गया और दरवाज़ा लगा दिया. मेरे कपड़े पूरे भीग चुके थे और जुकाम बहुत बढ़ गया था. मेरा पैर भी दुख रहा था.
फिर रिषी ने मुझे सोफे पर लिटाया और अंदर चला गया. मैं उसके नंगे बदन को घूर रहा था. उसके जीन्स में उभार था. शायद ये ठंड के कारण ही था.
फिर जब वह लौट के आया तो उसने छोटी चड्डी पहन रखी थी. उसके ऊपर कुछ नहीं पहना था. वह मेरे पास आकर बैठ गया. पलभर उसने मुझे देखा और मेरे बेल्ट में हाथ डालकर मुझे अपनी ओर खींच लिया. उसका एक हाथ मेरे बेल्ट में था और दूसरे हाथ से मेरी कमीज़ के बटन खोलने लगा. फिर उसने मेरी शर्ट उतारकर उसने फेंक दी और अब बेल्ट खोलने लगा.
मुझे मेरे बदन पर उसकी सांसें महसूस हो रही थी. उसने बहुत ध्यान से मेरी पैंट उतारी क्योंकि पैर में चोट लगी थी. फिर उसने मेरी अंडरवियर को खींचा. मैं सिर्फ उसके हाथों की गर्माहट महसूस कर रहा था. उसने मेरी अंडरवियर फर्श पर फेंक दी और अंदर चला गया.
मैं समझ गया था कि अब क्या होगा! पैर की चोट भुलाने का यह अच्छा तरीका था. मैंने आंखें बंद ही रखी और सोफे पर टांगे फैला दी ताकि वो आये तो उसे मेरी फैली हुई टांगे दिखे और वह इशारा समझ जाएं. मेरी आँखें बंद थी पर उसके आने की आहट सुनाई दे रही थी. वह आकर मेरे पैरों के पास बैठ गया.
फिर उसने अपनी एक धुली हुई अंडरवियर मुझे पहनाई और मुझे गोद में उठाकर अंदर ले गया. उसके नंगे बदन से मेरा नंगा बदन लिपट चुका था, पर मैंने नींद में होने का नाटक किया. फिर उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया और चोट पर हल्दी लगाई. मेरी आँखें अभी बंद ही थी.
एक पल को उसकी सांसें मुझे अपने होंठों पर महसूस हुई पर फिर वह माथे पर चूमकर चला गया और जाकर सोफे पर लेट गया. वह यूँ ही नंगा पड़ा था. सिर्फ उस छोटी सी चड्डी में और मैं अंदर के कमरे में तड़प रहा था. आखिर थक हारकर मैं सो गया. सुबह उठा तो देखा कि किसी ने मुझे कम्बल ओढ़ा दिया था.
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